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मालदा का सच और सियासत

jls
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पश्चिम बंगाल का मालदा कभी आम के लिए मशहूर हुआ करता था. वहां बड़े पैमाने पर चावल की खेती की जाती थी. लेकिन अब इस मालदा की तस्वीर बदल गई है. अब यहां अपराधियों और माफियायाओं का बोलबाला है. अब यहां बात-बात पर हिंसा होती है. मालदा हिंसा पर आज तक(न्यूज चैनेल) ने तहकीकात की कि आखिर वहां ऐसा क्यों हो रहा है. ऐसा क्या हो रहा है जिस पर सुरक्षा एजेंसियों को ध्यान देना बेहद जरुरी है.
मालदा के खेतों में अवैध रूप से अफीम की खेती हो रही है. आप को जानकर हैरानी होगी कि अफीम की खेती एक या दो बीघों में नहीं बल्कि अस्सी हजार बीघे में की जा रही है. इससे तीन हजार करोड़ से भी ज्यादा की काली कमाई होती है. जाहिर सी बात है कि करोड़ों की काली कमाई है, तो इसमें अपराधियों की बड़ी जमात भी होगी. इसकी कमाई के लिए लोग किसी भी हद तक जाने को तैयार रहते हैं.
इसका सबसे बड़ा उदाहरण 3 जनवरी 2016 को कालिया चक में हुई घटना है. इसमें पुलिस की मौजूदगी में थाने को ही फूंक दिया. दंगाईयों ने जो कहर बरपाया उससे पूरे राज्य में सनसनी फैल गई. पुलिस-प्रशासन भी इनके सामने लाचार हो गया. दंगाईयों के सामने जो आया वही उनका शिकार हो गया. इन लोगों ने जमकर उत्पात मचाया. पुलिस ने रोकने की कोशिश की तो थाने को ही फूंक दिया.
थाने में मौजूद सारे क्रिमिनल रेकॉर्ड तक जला डाले. पुलिस को अपनी जान बचाकर वहां से भागना पड़ा. 4 घंटे तक दंगाईयों ने जमकर उत्पात मचाया. कई लोग घायल हो गए. इसके बाद दंगाई खुद ही वहां से चले गए. पुलिस मूकदर्शक की तरह सिर्फ उस नजारे को देखती रही. मीठे आमों का शहर मालदा अब दहशत में है. यहां आये दिन हो रहे वारदात की वजह जानने के लिए आजतक की खुफिया टीम मालदा पहुंची.
आजतक की टीम की पड़ताल में जो सच सामने आया वो बेहद चौंकाने वाला है. मालदा में हिंसा की आग अभी बुझी भी नहीं थी कि सियासत सुलगने लगी. किसी ने घटना को सांप्रदायिक रंग दिया तो किसी ने कहा कि BSF और लोगों के बीच तनाव ने हिंसा का रुप धारण कर लिया. लेकिन सियासत के बीच कई सवाल सुलग रहे थे.
क्या वाकई मालदा की हिंसा सांप्रदायिक थी? या BSF और स्थानीय लोगों के बीच तनाव की वजह से हिंसा हुई थी? अचानक कहां से आई थी डेढ़ लाख लोगों की भीड़? हथियार लेकर लोग सड़कों पर विरोध प्रदर्शन के लिए क्यों उतरे थे? क्या पुलिस को डेढ लाख लोगों के इकट्ठा होने की सूचना थी? यदि, पुलिस को भीड़ की जानकारी थी तो मुक्कमल तैयारी क्यों नहीं की गई? राज्य सरकार पूरे मामले की लीपापोती करने में क्यों जुटी रही?
जितनी जानकारी मिल सकी है उसके अनुसार जानकारी होते हुए भी सरकार का आदेश नहीं था कि इस घटना को ज्यादा तूल दिया जाय क्योंकि इसके साम्प्रदायिक हो जाने के खतरे ज्यादा थे. सरकार इसे साम्प्रदायिक होने से बचाना चाहती थी. सरकारी संपत्ति का नुक्सान हुआ पर जान की हानि नहीं हुई. पुलिस मूकदर्शक बन सब कुछ देखती रही और लोगों का गुस्सा खुद ब खुद शांत हो गया.
मालदा में इतनी बड़ी तादाद में अवैध हथियार मौजूद हैं कि जितने पुलिस के पास भी नहीं. असलहों की बदौलत इस जिले में माफिया और अपराधियों की अपनी सरकार चल रही है. यहां नकली नोट और अवैध हथियारों की फसल लहलहा रही है. यह अब अपराधियों का गढ़ बन चुका है. यहां देश का कानून काम नहीं करता. अपराधियों की अपनी सरकार है. पराधियों का खौफ इस कदर हो चुका है कि पुलिस भी इनसे डरती है.
अफीम की खेती और हथियारों की तस्करी के लिए अफगानिस्तान दुनिया भर में कुख्यात है. पैगंबर मोहम्मद के खिलाफ कथित अपमानजनक टिप्पणी के मुद्दे पर हिंसा और आगजनी का शिकार पश्चिम बंगाल के मालदा जिले का कालियाचक इलाका भी अफगानिस्तान से कम नहीं है. अंग्रेजी दैनिक मेल टुडे के मुताबिक, भारत और बांगलादेश की सीमा पर बसा ये इलाका अफीम की खेती, हथियारों की तस्करी और उग्रवाद के गठजोड़ के कारण हिंदुस्तान का अफगा‌निस्तान बन गया है.
उल्लेरखनीय है कि उत्तर प्रदेश के एक हिंदुत्ववादी नेता की ओर से पैगंबर मोहम्मद के खिलाफ अपमानजनक टिप्पणी करने के विरोध में मालदा जिले के कालियाचक कस्बे में एक रैली निनकली ‌थी, जिसमें हजारों की संख्या में मुसलमान शामिल थे. रैली में शामिल प्रदर्शनकारी उस वक्त हिंसक हो गए, जब पुलिस ने उन्हें आगे बढ़ने से रोक दिया. उन्होंने कालियाचक पुलिस थाने और क्षेत्र विकास अधिकारी कार्यालय में तोड़फोड़ कर आग लगा दी. सार्वजनिक संपत्तियों को नुकसान पहुंचाया गया, बीएसएफ और एनबीएसटीसी के वाहनों को जला दिया। 30 पुलिसकर्मी भी घायल हो गए।
“देखिए, यह है अफीम की खेती का समन्दर…”, कालियाचक पहुंची NDTV की टीम से एक्साइज़ डिपार्टमेंट में काम करने वाले सब-इंस्पेक्टर ने कहा…
पश्चिम बंगाल के माल्दा जिले में कालियाचक के गांवों में जहां तक हमारी नज़र गई, बस, अफीम के खेत नज़र आए… हालांकि इस गैरकानूनी खेती को नष्ट करने का काम होता रहा है, लेकिन 3 जनवरी के बाद से इसके तार दंगे से सीधे जोड़े जा रहे हैं, जब डेढ़ लाख लोगों के हुजूम ने हिंसा, लूटपाट और आगज़नी की… NDTV की टीम भी बॉर्डर सिक्योरिटी फोर्स (बीएसएफ) की मदद से उन खेतों तक पहुंच सकी, जहां यह खेती होती रही है… इसकी रखवाली के लिए ड्रग माफिया के लोग बंदूकें ताने नज़र रखते हैं, लेकिन अब सख्ती के कारण उनकी पकड़ ढीली पड़ रही है…
अफीम से होने वाली कमाई गेहूं से होने वाली कमाई की तुलना में 10 गुना ज़्यादा होती है… अफीम के फूलों से निकाला हुआ गोंद ही 80,000 रुपये प्रति किलो तक बिक जाता है, और कहीं-कहीं तो एक-एक लाख रुपये में… इसी गोंज को बाद में प्रोसेस कर मॉरफीन और हेरोइन जैसी ड्रग बनाई जाती हैं, लेकिन यह काम स्थानीय स्तर पर नहीं होता…
बहरहाल, इसकी खेती के बढ़ते दायरे पर काबू के लिए बीएसएफ, एक्साइज़ और लैन्ड डिपार्टमेंट एकजुट होकर कार्रवाई कर रहे हैं… पिछली बार पांच-छह ट्रैक्टरों की मदद से खेती को नष्ट किया गया था, तो इस बार आठ से भी ज़्यादा ट्रैक्टर इस्तेमाल किए जा रहे हैं…
5 जनवरी से शुरू हुई कार्रवाई में 3,400 बीघा जमीन पर अफीम की खेती नष्ट की गई, लेकिन एक्साइज़ विभाग के पुराने लोगों का कहना है कि अगर 50 बीघा में से 30 बीघा भी नष्ट कर दी जाए, तो इसके बावजूद इस काम में लगे लोगों को फायदा ही होता है…
यहां ज़मीन कुछ किसानों की है, कुछ बाहरी लोगों की… किसानों को उनकी ज़मीन के एक बीघा के 50,000 रुपये के हिसाब से रकम दे दी जाती है, और फिर उस पर अफीम की खेती की जाती है… अब सबसे बड़ा सवाल उस नेक्सस (गठजोड़) का है, जो इस खेती को होने देता रहा है… सवाल है कि प्रशासन के लोग इसे नार्को-टैररिज़्म (narco-terrorism) कहते हैं, लेकिन इसके बावजूद यह कैसे पनपता रहा… कौन हैं वे ताकतें, जो इसको नजरअंदाज करती हैं, इसे शह देती हैं, और हमारे देश की सुरक्षा से समझौता करती हैं…
अब नारकोटिक्स विभाग की देख रेख में अफीम की खेती को नष्ट किया जा रहा है.
नशा नाश का कारण होता है, यह सभी जानते हैं फिर भी इसका कारोबार देश विदेश में बढ़ता ही जा रहा है. नशे की हालात में ही अधिकांश अपराध होते हैं. क्या हमें इनपर अंकुश नहीं लगाना चाहिए?
सवाल फिर वही है कि क्या आगे इस क्षेत्र में अफीम की खेती नहीं होगी, अवैद्य हथियारों और ‘फेक करेंसी’ के कारोबार पर अंकुश लगेगा, ताकि मालदा मिनी अफगानिस्तान बनने से बच जाय. हमारे देश के वंचित क्षेत्रों के पूर्ण विकास पर राज्य और केंद्र सरकारें ध्यान देगी? लोग जो दिक्भ्रमित हैं, उन्हें मुख्यधारा में लाने का समुचित प्रयास करेगी?
नक्सल प्रभावित क्षेत्र भी ऐसे ही हैं. विकास से कोसों दूर. दिक्भ्रमित नौजवान! जिनके हाथ में देश को बनाने का जज्बा होना चाहिए आज हथियारों से खेल रहा है और बेक़सूर, मासूम लोगों की जिन्दगी से खिलवाड़ कर रहा है. हम स्मार्ट सिटी का जितना भी ‘माया-जाल’ बुन लें, जबतक पिछड़े वंचित लोगों को मुख्यधारा में न लाया जायेगा, हमारा देश महँ नहीं बन पायेगा. उम्मीद है कि हमारी सरकारें, स्वयंसेवी संस्थाएं मिलजुलकर स्थायी हल ढूंढ निकलेगी. इसी आशा के साथ कि देश को जोड़ने का काम हो, तोड़ने का नहीं. जयहिंद !

– जवाहर लाल सिंह, जमशेदपुर.

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