Menu
blogid : 3428 postid : 1214014

गर अभी समझ न पाएंगे

jls
jls
  • 457 Posts
  • 7538 Comments

सूरज खुद जलता जाता है, धरती को अधिक तपाता है,
जब सूख गए सब नदी ताल, मानव, खग, पशु होते बेहाल,
जल के भापों का कर संचन, नभ में बदल हो गए सघन
काले बादल होते भारी, कर लिए पवन से जब यारी
बूँदों के भार न सह पाये, वर्षा बन वसुधा पर आये.
प्रकृति की गति भी न्यारी है, उसकी अपनी तैयारी है.
हम नहीं समझ जब पाते हैं, संतुलन बिगाडे जाते हैं.
कटते जाते जब वन जंगल, चिंता के साथ में आता कल.
भीषण वर्षा के तेज धार, नदियां उफनाई ले के ज्वार.
टूटे कितने ही शिला खंड, हिमगिरि भी होते खंड खंड.
बारिश विपदा बन कर आई, घर घर में जलधारा लाई.
खेतों में अब न फसल होंगे, घर में अनाज न फल होंगे.
बह गए अनेक ईमारत कब, करते है लोग इबादत अब.
हे ईश्वर अब तो दया कर दो, जीवन की भी रक्षा कर दो.
सैनिक बन आये देवदूत, रक्षा करते ये पराभूत !.
सैनिक जब सीमा पर होते, सीमा की वे रक्षा करते.
पर विपदा चाहे हो जैसी, ये करते मदद विधाता सी.
हे मानव अब भी ले तू सीख, या मांगोगे जीवन की भीख.
करके उपयोग जरूरत भर, संचित कर ले अंजुल भरकर,
जीने का हक़ सबको ही है, पशु, खग, जन, जड़,वन को भी है.
जल, वायु, जीव, वसुधा अरु वन, बनाते समरस पर्यावरण
गर अभी समझ न पाएंगे, कल को हम ही पछताएंगे.
गर अभी समझ न पाएंगे, कल को हम ही पछताएंगे.
जवाहर लाल सिंह, जमशेदपुर

Read Comments

    Post a comment

    Leave a Reply

    Your email address will not be published. Required fields are marked *

    CAPTCHA
    Refresh