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सर्जिकल स्ट्राइक (सेना की बड़ी कामयाबी)

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“अपि स्वर्णमयी लङ्का न मे लक्ष्मण रोचते। जननी जन्मभूमिश्च स्वर्गादपि गरीयसी॥”
“लंका पर विजय हासिल करने के बाद मर्यादा पुरुषोत्तम राम अपने छोटे भाई लक्ष्मण से कहा: – यह सोने की लंका मुझे किसी तरह से प्रभावित नहीं कर रही है। माँ और जन्मभूमि स्वर्ग से भी बढ़ कर है।”
अभी नवरात्रि का त्योहार चल रहा है और विजयादशमी भी ११ अक्टूबर को हर्षोल्लास से मनाई जायेगी. विजया दशमी के दिन ही श्री राम ने माँ दुर्गे की आराधना करते हुए रावण को उसके ही देश लंका की रणभूमि में मार गिराया था. लंका पर विजय उनका उद्देश्य नहीं था. उनका उद्देश्य दुराचारी रावण और उसके सहयोगियों का विनाश था. इसीलिये उन्होंने सोने की लंका रावण के ही भाई विभीषण को सौंप दी और खुद माता सीता और अपने सभी सहयोगियों के साथ अयोध्या वापस लौट गए. वैसे रामायण में भी हनुमान जी द्वारा लंका जलाकर सुरक्षित लौट आने को भी काफी लोगों ने सर्जिकल स्ट्राइक का पहला उदाहरण माना है.

हमारे प्रधानमंत्री श्री मोदी भी नवरात्र व्रत करते हैं. उन्हें धर्मकार्यों में गंभीर आस्था है, साथ ही अपने वतन और वतन के वासियों से भी भरपूर प्यार है. वे चाहते हैं भारत दुनिया के प्रगतिशील राष्ट्रों की श्रेणी में हो. इसके लिए वे जी-जान से मिहनत भी कर रहे हैं. उन्होंने खा भी है कि उन्हें परायी जमीन नहीं चाहिए. अपनी भारतभूमि सर्वश्रेष्ट है. पर कुछ लोग और कुछ आतंकवादी संगठन उनके रास्ते में रोड़ा अटकाना चाहते हैं. कुछ आतंकवादी घटनाओं से देश में असुरक्षा की स्थिति पैदा करने का बार-बार प्रयास किया जाता रहा है. इसका जवाब देना उचित भी था. और जवाब के रूप में आया ‘सर्जिकल स्ट्राइक’ …..
दुनिया की दूसरी सबसे बड़ी थल सेना के डीजीएमओ लेफ्टिनेंट जनरल रणवीर सिंह ने 29 सिंतबर को पूरी दुनिया के सामने यह ऐलान किया कि “सेना का यह अभियान इस पर केन्द्रित था कि आतंकवादी किसी भी सूरत में अपने मंसूबों में कामयाब न हो पाएं भारतीय सेना ने सर्जिकल हमले करते हुए पाकिस्तान में आतंकवादियों की घुसपैठ की कोशिशों को नाकाम कर दिया..आतंकवादियों के खिलाफ इस अभियान के दौरान आतंकवादियों को तो नुकसान पहुंचाया ही गया साथ ही उनको समर्थन देने वालों को भी बख्शा नहीं गया है. आतंकवादियों को निष्क्रिय करने के उद्देश्य से इस काम को अंजाम दिया गया. इसे आगे जारी रखने की कोई योजना नहीं है.”
यह तब का बयान था डीजीएमओ का. आगे यह और होगा या नहीं यह निर्भर करता है कि पाकिस्तान के आतंकवादी क्या रुख अपनाते हैं और हमारी केंद्र सरकार का अगला निर्देश क्या होता है. भारत की 11 लाख की थल सेना जो भी ऑपरेशन करती है उसका प्रमुख डायरेक्टर जनरल मिलेट्री ऑपरेशन (DGMO) होता है. इसमें कोई दो राय नहीं है कि सेना के पास सर्जिकल स्ट्राइक के सबूत हैं. जितनी जानकारी मीडिया के द्वारा उपलब्ध है उस वक्त सेटेलाइट, यूएवी और कमांडो के हेलमेट में थर्मल इमेजिंग और नाइट विजन कैमरे से वीडियो और तस्वीरें ली गई हैं. इन तस्वीरों और वीडियो को सेना के आला अधिकारियों के साथ सरकार के सुरक्षा से जुड़े अधिकारियों ने भी देखा है. सूत्रों की मानें तो सेना ने पूरे ऑपरेशन पर केन्द्रित 90 मिनट के वीडियो फुटेज बतौर सबूत सरकार को दे भी दिए हैं. ऐसा भी नहीं है कि सेना ने पहली बार एलओसी पार जाकर सर्जिकल स्ट्राइक किया हो. पहले भी सेना छोटे स्तर पर ऐसी कार्रवाई को अंजाम देती रही है, लेकिन पहली बार इतने बड़े स्तर पर और डंके की चोट पर इसका ऐलान किया गया है.
सेना के सूत्रों की मानें तो सेना इस ऑपरेशन से जुड़े वीडियो या चित्र रिलीज करने के पक्ष में नहीं है, वजह है इससे जुड़ी जानकारी सार्वजनिक होते ही सारी जानकारी दुश्मनों को मिल जाएगी. मसलन कमांडो ने किस जगह से एलओसी पार की, लांचिंग पैड तक कैसे पहुंचे, हेलमेट में कौन-कौन से डिवाइस लगे थे, कौन-कौन से हथियार लिए हुए थे कमांडो. और तो और जवानों की पहचान सबके सामने आ जाएगी जो शायद राजनीतिक तौर पर तो सही हो सकता है लेकिन रणनीतिक तौर पर तो कतई सही नहीं ठहराया जा सकता. इसे अगर सबके सामने लाया जाता है तो न सिर्फ हमारे ऑपरेशन करने के तरीके दुश्मन जान जाएगा बल्कि भविष्य में इसका इस्तेमाल बखूबी हमारी सेना के खिलाफ भी कर सकता है. सेना से जुड़े लोग बता रहे हैं कि क्या दुनिया में कही भी ऐसे ऑपरेशन होते हैं, उसके सबूत सामने आते हैं क्या? अमेरिका ने दुनिया के सबसे बड़े आतंकी ओसामा बिन लादेन को मारा लेकिन आज तक उसकी न तो ऑपरेशनल डिटेल्स आई और न ही कोई तस्वीर. बस एक तस्वीर आई जिसमें व्हाइट हाउस में अमेरिकी राष्ट्रपति इस ऑपरेशन को टीवी पर देख रहे हैं. तो फिर हमारी सेना को अपनी राजनीति की रोटियां सेंकने के लिए क्यों घसीटा जा रहा है? वैसे भी पाकिस्तान तो क्या कोई भी देश यह कैसे स्वीकार कर सकता है कि उसके घर में घुसकर उसकी पिटाई की गई है! यदि वह स्वीकार कर लेता है तो यह बात भी ससबूत स्पष्ट हो जाएगी कि वह आतंकियों की पनाहगाह है इसलिए उसके सामने तो यहां कुआं और वहां खाई वाली स्थिति है. यही कारण है कि वह इसे पुरजोर तरीके से झूठा साबित करने में जुटा है. तो क्या हमारे कुछ नेता पाकिस्तान की संतुष्टि के लिए सर्जिकल आपरेशन के सबूत मांग रहे हैं या उन्हें भी अपनी सेना-सरकार पर भरोसा नहीं है? हो सकता है कि सरकार विपक्ष के नेताओं और कुछ वरिष्ठ पत्रकारों को इस ऑपरेशन से जुड़े कुछ चुनिंदा वीडियो और तस्वीरें दिखाए, लेकिन इस बारे में अभी तक अंतिम फैसला नही लिया गया है.
दुःख की बात तो यह है कि राजनीतिक गुणा-भाग के चक्कर में उस भारतीय सेना की विश्वसनीयता को कटघरे में खड़ा किया जा रहा है, जो देश में बाढ़ से लेकर तूफान तक और विदेश में युद्ध से लेकर आपदा के दौरान तक भारतीय लोगों के प्राणों की रक्षा के लिए बेझिझक अपने प्राण न्यौछावर करने में एक मिनट के लिए भी पीछे नहीं हटती. जहां तक कश्मीर में उस पर पत्थर फेंकने वाले और फिंकवाने वाले भी जब बाढ़ की विकरालता की चपेट में आते हैं तो वह बिना भेदभाव के उनके प्राण बचाकर अपने आदर्श को और भी मजबूती से स्थापित कर दिखाती है. न तो देश की आम जनता में और न ही दुनिया में इस सर्जिकल ऑपरेशन को लेकर किसी तरह का संदेह है. अब जरा उन लोगों की बात कर लेते हैं जो इस ऑपरेशन का सबूत मांग रहे हैं. इनमें सबसे प्रमुख हैं दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल जिन्होंने अपने वीडियो में सीधे तौर पर तो नहीं लेकिन इशारों में तो सवाल उठा ही दिए हैं. केजरीवाल और राहुल गाँधी अभी अपरिपक्व नेता हैं और अपनी बातों से सदा विवादों में घिरे रहते हैं. कुछ लोग उनपर आपत्तिजनक प्रहार भी करते हैं, जो मेरी नजर में राजनीति और सोसल मीडिया का गिरता हुआ स्तर को जाहिर करता है. केजरीवाल के बाद, अपनी आदत से मजबूर कुछ कांग्रेसी नेता भी सवाल उठा रहे हैं, लेकिन अच्छी बात है कि कांग्रेस के उपाध्यक्ष राहुल गांधी और पार्टी के प्रवक्ताओं ने ही ऐसे लोगों को आइना दिखाते हुए स्पष्ट कर दिया है कि देश की सेना पर उन्हें भरोसा है. फिर भी बाद में जब भाजपा इस सर्जिकल स्ट्राइक का राजनीतिक इस्तेमाल कर पोस्टरों में दिखलाने लगी तो राहुल ने उन्हें सेना के खून की दलाली से विभूषित कर दिया. यह भी एक राष्ट्रीय स्तर के नेता के लिए मार्यादित नहीं कहा जा सकता.
मेरा मानना है कि अभी जरूरत यह है कि पूरा देश न केवल एकजुट रहे, बल्कि एकजुट दिखे भी. क्योंकि राजनीति करने के लिए तो और भी मौके मिलेंगे, परन्तु सेना की छवि को हमने अपने चंद फायदे के लिए धूमिल कर दिया तो उसे सुधारने-संवारने में सालों लग जाएंगे. नेता तो अपनी करतूतों से जनता का विश्वास लगभग खो ही चुके हैं, लेकिन कम-से-कम सेना को तो अपनी राजनीति का मैदान न बनाएं. यह बात पक्ष-विपक्ष दोनों पर लागू होती हैं. सूत्रों के अनुसार प्रधान मंत्री भी अपने सभी मंत्रियों और सहयोगियों को इसपर सोच समझ कर बोलने और बयानबाजी से बचने की सलाह दी है. पर राजनीति तो ऐसी ही है कि तू डाल डाल मैं पात पात !
अंत में मैं माँ दुर्गा से प्रार्थना करता हूँ कि हमें शक्ति के साथ सद्बुद्धि भी प्रदान करें. शक्ति का संयमित प्रयोग हो और अति उत्साह में दुस्साहस से बचने में हमारी मदद करें ! माँ दुर्गा ने भी महिषासुर का मर्दन किया और पृथ्वी को उसके दुश्चक्र से बचाया. उन्हें आदिशक्ति भी कहा जाता है, उनके कई रूप हैं और हमसभी उनके हर रूप की आराधना करते हैं. अंतिम दिन यानी महानवमी के दिन कुंवारी कन्याओं को पूजाकर उन्हें भी दुर्गाशक्ति की तरह बनाने की कमाना करते हैं. आज जरूरत है कि हर बेटी दुर्गा के रूप में अपने को प्रतिष्ठित करे और आतताइयों से लोहा लेने के लिए तैयार रहे. हम भी माँ, बेटी, बहन, पत्नी आदि सभी नारी-शक्ति के रूपों को उचित सम्मान और अधिकार दें!
सभी पाठकों को विजयादशमी की हार्दिक शुभकामनाएं!
जय माता दी! जय माँ दुर्गे! जय भारत माता! वन्दे मातरम!

– जवाहर लाल सिंह, जमशेदपुर.

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