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नोटबंदी – आर्थिक सुधार में सहायक

jls
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आठ नवंबर की रात आठ बजे जब प्रधानमंत्री ने नोटबंदी का ऐलान किया था तब मुझ जैसा मध्यमवर्गीय, टैक्स देने वाला हर शख्सा प्रसन्न था. क्योंकि प्रधानमंत्री के इस निर्णय पर बहुत सारी बहस और स्टोरी देख कर मैं और मेरे जैसा हर व्यखक्ति थक चुका था!
एक चिंता मन में ब्याप्त गयी – मेरी पत्नी और मेरी पुत्री घर से बाहर कोलकाता में थी. वहां से उसे एक शादी समारोह में भाग लेने जाना था. छुट्टी के अभाव में मैं साथ नहीं जा सका था. पर उन लोगों को मैंने १००० और ५०० के ही अधिकतर नोट देकर विदा किया था. ट्रेन टिकट तो ऑन लाइन हो गया था, पर टैक्सी, आदि के लिए अन्य खर्चों के लिए उनके पास पर्याप्त सौ के और खुदरे नोट थे या नही चिंता सताने लगी. उनलोगों से मैंने संपर्क साधा और बताया. उन्हें तो इस बात की भनक भी न थी. जैसे भी उनलोगों ने अपने पास के खुदरे पैसे से काम चला लिया. शादी समारोह में गिफ्ट आदि में बड़े नोट ही दे दिए गए. आखिर क्या किया जा सकता था. दूसरे दिन बैंक एटीएम भी बंद थे.
काले धन वालों का तो पता नहीं पर आम आदमी की हालत देख लगा क्या फ़ैसला लेते समय इन को भूल तो नहीं गए थे? या ऐसा दृश्य सोचा नहीं था. धीरे धीरे ज्यों-त्यों गुज़रती ख़बरों के बीच यह ख़बर रुकने का नाम नहीं ले रही है. लंबी क़तारें, शादियों की चिंता, बंद पड़ी दुकानें मेरी ख़ुशी को दिनोंदिन फीका कर रही है. सारा ध्यान अचानक से काले धन से निकल एक आम आदमी की हालत पर आ गया. कुछ लोगों से पता चला कि बहुत सारे लोग बड़े लोगों के लिए लाइन में खड़े थे और नियमानुसार ४००० के नोट बदली करा रहे थे. इसके लिए उन्हें एक निर्धारित रकम मिलती थी. यह भी एक कारण था, बैंकों में बड़ी कतार का. अब यह जान कर लगा क्या बड़े लोग वाक़ई इस बदलाव से परेशान हैं? क़तारें मजबूरी में लगीं हैं या पैसे के बदले, हैं तो दूर दूर तक. अब जानना यह है कि रोज के बदलाव क्या जनता को और परेशान करेंगे या संतुष्ट?अब बार बार अपनी ही ख़ुशी से मेरा सवाल है कि क्या वाक़ई में ख़ुश हैं हम? सरकार के फ़ैसले के ख़िलाफ़ नहीं हूं पर जहां तक नज़र जाए वहां तक लंबी भीड़ की एक आवाज़ सुनाई देती है, ख़ुशख़बरी क्या ऐसी होती है?
नोटबंदी से प्रभावित गरीबों के लिए विशेष राहत कदमों का आह्वान करने के बाद प्रमुख उद्योगपति रतन टाटा ने शनिवार(२६ नवम्बर) को सरकार के नोटबंदी के कदम को तीन सबसे महत्वपूर्ण आर्थिक सुधारों में से एक बताया, जिससे कालेधन का मुकाबला करने में मदद मिलेगी. टाटा ने ट्विटर पर लिखा कि सरकार के नोटबंदी के साहसिक क्रियान्वयन को देश के समर्थन की जरूरत है. ‘नोटबंदी भारत के इतिहास में किए गए तीन सबसे महत्वपूर्ण आर्थिक सुधारों में से एक है. दो अन्य प्रमुख आर्थिक सुधारों में लाइसेंस राज का खात्मा और जीएसटी है’. टाटा ने कहा है कि प्रधानमंत्री ने हाल ही में मोबाइल और डिजिटल भुगतान पर जोर दिया है. इससे भी हमारी अर्थव्यवस्था को नकदी-चालित अर्थव्यवस्था से नकदीविहीन अर्थव्यवस्था में बदलने में काफी मदद मिलेगी. ‘कालेधन से मुकाबला करने और इससे लड़ने के लिए सरकार की मजबूत प्रतिबद्धता को देश भर के समान सोच वाले लोगों का समर्थन और सहयोग मिलना चाहिए. प्रधानमंत्री ने नोटबंदी का बड़ा कार्यक्रम शुरू कर कालेधन की अर्थव्यवस्था के खिलाफ लड़ाई छेड़ने का काफी बड़ा साहस दिखाया है.’ टाटा ने पिछले दिनों सरकार से नोटबंदी के बाद गरीबों को हो रही तकलीफ को देखते हुए विशेष राहत उपाय करने का आग्रह किया था.
पारदर्शिता हर मामले में ही काबिल-ए-तारीफ नहीं होती. सेना या खुफिया एजेंसियों के कामकाज को देश के लोगों से छिपाकर रखा जाता है. काले धन को बाहर निकालने का काम भी सेना और खुफिया एजेंसियों जैसा बनाना पड़ा. नोटबंदी की तैयारी खुफिया तरीके से की गई. हालांकि अभी इस बात पर विवाद है कि तैयारी वाकई की गई थी या नहीं, लेकिन इसे बताने के लिए सरकार ने मीडियातंत्र का जिस हुनरमंदी से इस्तेमाल किया, उसकी तारीफ ज़रूर की जानी चाहिए. दो हफ्ते के भीतर ही आज़ाद भारत के इतिहास में यह घटना अभूतपूर्व सिद्ध हो गई है. राष्ट्रहित के बैनर पर मीडिया ने सरकार से भी दो कदम आगे आकर जिस तरह नोटबंदी को सराहा है, और एक राष्ट्रभक्त कार्यकर्ता की तरह सरकार का साथ दिया है, उसे सिर्फ देश में नहीं, पूरी दुनिया में बड़े कौतूहल से देखा गया होगा.
नोटबंदी के लगभग तीन सप्ताह बाद भी देश में जिस तरह का धूम-धड़ाका मचा हुआ है, उसे देखते हुए कोई भी कह सकता है कि इस फैसले को लागू करने के लिए जो तैयारी की जानी ज़रूरी थी, वह नहीं की गई थी. इस पर कोई विवाद इसलिए भी नहीं है कि खुद सरकार ने माना है कि गोपनीयता बनाए रखने के लिए बैंक और एटीएम की व्यवस्था नहीं बनाई जा सकती थी. ज़ाहिर है, सरकार ने सोच लिया था कि जो होगा, उसे मौका-ए-वारदात पर ही निपटा दिया जाएगा. 130 करोड़ की आबादी वाले देश में इतना सनसनीखेज़ काम चालू करने में किसी सरकार का ऐसा जबर्दस्त अति-आत्मविश्वास हमें फिर सरकार की तारीफ करने को प्रेरित करता है. देश के हर तबके को कितनी भी परेशानी हुई हो, लगभग दो हफ्तों में नोटबंदी का आधा काम तो सरकार ने निपटा ही लिया है.
काला धन, अपराध-धन, भ्रष्टाचार, समांतर अर्थव्यवस्था का खात्मा वगैरह ऐसे शब्द हैं, जिन्हें नोटबदी के फैसले के केंद्र में रखकर सरकार ने क्रांति का उद्धोष किया. दरअसल, बहुत सारे लक्ष्यों को एक साथ देखना ज़रा मुश्किल होता है, लिहाजा इन सारे लक्ष्यों को एक ही शब्द में समेटा गया था, जिसे राष्ट्रहित या राष्ट्र का नवनिर्माण नाम दिया गया. इसका चमात्कारिक प्रभाव यह हुआ कि नोटबंदी के फैसले की समीक्षा हो सकने की सारी संभावनाएं खत्म हो गईं. राष्ट्रहित के काम के बारे में आमजन तो क्या बोल सकते हैं, एक से बढ़कर एक विद्वान भी नोटबंदी पर होठबंदी करने को विवश हो गए. जिन बातों को कहना ही खतरे से खाली न हो, उसके बारे में सोचना किसलिए. इसी का नतीजा है कि नोटबंदी के फैसले पर विशेषज्ञ और विद्वान इसके गुण-दोषों के बारे में सोचने तक से परहेज़ कर रहे हैं.
1,000 और 500 के पुराने नोटों की कुल रकम 14,20,000 करोड़ की है. अब तक के 15 दिन का मोटा-मोटा अनुमान यह है कि छह लाख करोड़ के पुराने नोट देशवासियों ने रात-रातभर बैंकों के सामने लंबी-लंबी लाइनों में जूझते हुए जमा कराए हैं. ये लोग अपनी पुरानी जमा रकम निकालकर और अपने पुराने नोट बदलकर जो नए नोट और पुराने 100-100 के नोट ले पाए हैं, वह लगभग सवा लाख करोड़ ही है. व्यापार और दूसरे कामकाज के लिए नोटों का भारी टोटा पड़ा हुआ है. दो हफ्ते में ही सकल घरेलू उत्पाद को लगभग 10 लाख करोड़ की तात्कालिक चपत लग चुकी है. सरकारी अर्थशास्त्री बोलते समय फूंक-फूंककर कदम रख रहे हैं.
हालाँकि सरकार एक और मौका दे रही है काले धन वालों को ५० % टैक्स देकर आप अपने काले धन को सफ़ेद कर सकते हैं, कुछ अन्य शर्तों के साथ. इसके लिए हो सकता है संसद में बिल ले जाय!
चाहे जो हो लोगों ने काफी तकलीफें झेलकर भी मोदी जी के इस पहल को स्वीकार है और मीडिया तथा विपक्षी पार्टियों के चढ़ाने पर भी अपना संयम नहीं खोया है. मोदी जी ने इसके लिए जनता को धन्यवाद भी कहा है. जन धन खातों का भी गलत इस्तेमाल हो रहा है, नए २००० के जाली नोट भी छपने चालू हो गए हैं, कहीं कमीशन लेकर पुराने नोट बदले जा रहे हैं. इस सब पर सरकार को पैनी दृष्टि रखनी होगी. आम आदमी की परेशानी कम-से-कम हो इसका विशेष ख्याल रखना होगा. मोदी जी के इस कदम का स्वागत हर तबके के लोगों ने किया है और दूसरे देशों में भी इस कदम की सराहना की जा रही है. जय मोदी! जय हिन्द!
– जवाहर लाल सिंह, जमशेदपुर.

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