Menu
blogid : 3428 postid : 1300589

राजनीतिक दलों को कर-राहत क्यों?

jls
jls
  • 457 Posts
  • 7538 Comments

नोटबंदी के बाद राजनीतिक दलों के खातों में चाहे जितनी भी रकम जमा हुई हो, उसकी जांच नहीं की जाएगी. सरकार के इस फैसले पर सवाल उठने लगे हैं. साथ ही मांग उठने लगी है कि इस छूट को वापस लिया जाना चाहिए. पूर्व मुख्य चुनाव आयुक्त एसवाई कुरैशी का कहना है कि जब सरकार रिक्शेवाले, सब्जीवाले और मजदूर तक से उसकी आय का हिसाब मांग रही है तो राजनीतिक दलों से क्यों नहीं? वहीं पूर्व जस्टिस संतोष हेगड़े का कहना है कि नोटबंदी के बाद तो राजनीतिक दलों को भी पारदर्शिता से काम करना चाहिए और उन्हें टैक्स संबंधी सभी सुविधाएं भी वापस होनी चाहिए. श्री हेगड़े ने कहा कि यह अश्चर्यजनक है कि राजनीतिक दलों को सिर्फ उस लेन-देन का ब्योरा चुनाव आयोग के समक्ष पेश करना होता है, जो 20 हजार या उससे ज्यादा हो. इसी का लाभ उठाकर तमाम राजनीतिक दलों पर कालेधन को सफेद करने और चुनावों में बेहिसाब कालाधन खर्च करने के आरोप लगते रहे हैं.
इसके बाद राजस्व सचिव अढिया का दिया गया जवाब : नोटबंदी के बाद कोई भी पार्टी 500 और 1000 रुपए के पुराने नोटों को चंदे के तौर पर नहीं ले सकती. (पर जांच कौन करेगा? चंदा नोट बंदी के पहले का है या बाद का) राजस्व सचिव हसमुख अढिया ने ट्वीट कर कहा- ‘राजनीतिक दलों को दी जा रही कथित छूट से संबंधित रिपोर्ट्स गलत और भ्रामक हैं.’ राजनीतिक दलों को मिलने वाला चंदा इनकम टैक्स एक्ट, 1961 के सेक्शन 13A के तहत आता है और इसके प्रावधानों में किसी तरह का बदलाव नहीं है.
ब्लैक से व्हाइट मनी का ऐसे चलता है खेल
1. पार्टी बनाकर जनप्रतिनिधित्व कानून 1951 के तहत रजिस्टर्ड कराया जाता है। ऐसी करीब 1000 राजनीतिक पार्टियां रजिस्टर्ड हैं, जिन्होंने 2014 में लोकसभा चुनाव नहीं लड़ा।
2. कालाधन पार्टी को टुकड़ों में दिया जाता है। ज्यादातर चंदा 20 हजार से कम की रकम में होता है।
3. 20 हजार रुपए से कम चंदा दिखाने के लिए कार्यकर्ताओं के नाम का इस्तेमाल होता है।
4. पार्टी के अकाउंट में जमा इस राशि पर टैक्स नहीं लगता है.
“पंजीकरण के बरसों बाद भी चुनाव न लड़ने वाले दलों का मकसद क्या है? जब चुनाव नहीं लड़ना है तो पंजीकरण का क्या मतलब? अंदेशा है कि ये आयकर छूट की आड़ में कालेधन को सफेद बना रहे होंग.” -संतोष हेगड़े, पूर्व न्यायाधीश, सुप्रीम कोर्ट
“पूरे देश को कैशलेस भुगतान की ओर मोड़ा जा रहा है तो पार्टियों के चंदे को भी ऑनलाइन लेने का नियम बनना चाहिए. सरकार को तत्काल छूट समाप्त कर इनके खातों की जांच थर्ड पार्टी से करवानी चाहिए” – एसवाई कुरैशी, पूर्व मुख्य चुनाव आयुक्त
“राजनीतिक दलों से क्यों नहीं पूछा जाता कि उनके पास चंदे की रकम कहां से आई? जब नोटबंदी के बाद केंद्र सरकार ने 51 संशोधन जारी किए हैं तो एक संशोधन पार्टियों को मिलने वाली छूट पर लाना चाहिए.” – योगेंद्र यादव, स्वराज अभियान के अध्यक्ष
उधर वित्त मंत्री अरुण जेटली ने राजनीतिक दलों को कर छूट पर संदेह की स्थिति को दूर करते हुए शनिवार को कहा कि वे 500 एवं 1000 रुपये के पुराने नोटों में चंदा स्वीकार नहीं कर सकते क्योंकि उन्हें पिछले महीने ही अस्वीकार कर दिया गया था. उन्होंने स्पष्ट किया कि कोई भी नई छूट नहीं दी गई है. पंजीकृत राजनीतिक दलों की आय पर ऐतिहासिक रूप से दी जाने वाली सशर्त कर छूट जारी है और आठ नवंबर को नोटबंदी की घोषणा के बाद या पिछले ढाई वर्षों में कोई नई छूट या रियायत नहीं दी गई है. किसी भी अन्य की तरह राजनीतिक दल बैंकों को 30 दिसंबर तक पुराने नोटों में रखी गई नकदी जमा करा सकते है, “बशर्ते वे आय के स्रोत का संतोषजनक उत्तर दें और उनकी खाता पुस्तिका आठ नवंबर से पहले की प्रविष्टियां दर्शाती हो. यदि राजनीतिक दलों की पुस्तिकाओं या रिकॉर्ड में कोई असंगति पाई जाती है तो आयकर अधिकारी अन्य लोगों की तरह उनसे भी पूछताछ कर सकते हैं.”
केंद्रीय प्रत्यक्ष कर बोर्ड (सीबीडीटी) ने एक बयान में कहा है कि रजिस्टर्ड राजनीतिक दलों को दिए जाने वाले चंदे को कुछ शर्तों के साथ कर छूट है जिसमें खातों की ऑडिट और 20,000 रुपये से अधिक के सभी चंदे कर दायरे में शामिल हैं. हाल ही में कुछ मीडिया रिपोर्ट्स में कहा गया था कि बोर्ड को राजनीतिक दलों के आयकर रिटर्न जांचने का अधिकार नहीं है. इस बारे में स्पष्टीकरण जारी करते हुए सीबीडीटी ने कहा, ‘राजनीतिक दलों के खातों की जांच पड़ताल के लिए आयकर कानून में पर्याप्त प्रावधान हैं और ये राजनीतिक दल भी आयकर के अन्य प्रावधानों के दायरे में आते हैं जिनमें रिटर्न फाइल करना शामिल है.’
बयान में कहा गया है कि आयकर में छूट केवल पंजीकृत राजनीतिक दलों को है और इसमें भी कुछ शर्तें हैं जिनका उल्लेख आयकर कानून की धारा 13A में किया गया है. इन शर्तों में खाता बही सहित अन्य दस्तावेज रखना शामिल है. इसमें कहा गया है, ‘20,000 रुपये से अधिक हर तरह के स्वैच्छिक चंदे का राजनीतिक दलों को रिकार्ड रखना होगा जिसमें चंदा देने वाले का नाम व पता रखना भी शामिल है.’ इसके साथ ही हर राजनीतिक दल के खातों का चार्टर्ड एकाउंटेंट से ऑडिट होना चाहिए.
इस आदेश के बाद अभीतक एकमात्र दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल ने मांग की है कि नोटबंदी के बाद से जितने पैसे राजनीतिक पार्टियों ने जमा कराए हैं उसे सार्वजनिक किया जाए. सरकार के इसी फैसले पर सवाल उठाते हुए केजरीवाल ने कहा है, ‘बीजेपी को किस बात से डर लग रहा है? उनके इनकम टैक्स की जांच क्यों नहीं होनी चाहिए?’ केजरीवाल ने मांग की कि एक स्वतंत्र कमिटी सभी राजनितिक पार्टियों के पैसे की जांच करें. साथ ही केजरीवाल ने ये भी आरोप लगाया है कि पीएम मोदी और राहुल गांधी के बीच में कोई डील हुई है. ‘राहुल गांधी कल प्रधानमंत्री मोदी से मिलने पहुंचे थे, उसी के बाद ये घोषणा हुई है. राहुल ने पहले कहा था कि उनके पास पीएम मोदी के खिलाफ सबूत है. तो क्या इन दोनों ने मिलकर कोई डील की है?’
तात्पर्य यही है कि राजनीतिक पार्टियों को सभी रियायत हासिल है. वे कुछ करें या न करें, उनसे कोई सवाल नहीं पूछ सकता. पूरा सत्र संसद ठप्प करके रक्खेंगे तब भी उनकी कोई जवाबदेही नहीं बनती. चुनावी घोषणा पत्र में जितने भी वादे करें, उन्हें पूरा किया जाय या नहीं कोई सवाल नहीं. रैलियों सभाएं में जितना भी खर्च करें, कोई सवाल नहीं. एक दुसरे पर आरोप प्रत्यारोप भी लगायें पर सत्ता में आने के बाद कुछ सक्रियता नहीं. यानी हमाम में सभी नंगे हैं और एक दुसरे को ढंकने का ही प्रयास करते हैं. जनता हर बार ठगी सी महसूस करती है. लाइन में लगती है, धक्के खाती है, अपना रोजगार गंवाती है, जान भी गंवाती है. अपने ही कमाए पैसे निकालने के लिए जद्दोजहद करनी पड़े और वे सिर्फ बयानबाजी करते रहें. लोग जागरूक हो रहे हैं पर फर्क कुछ नहीं पड़ता. वर्तमान मोदी सरकार से लोगों को बहुत अपेक्षा थी, पर अबतक हासिल क्या हुआ? जितनी भी योजनायें केंद्र सरकार ने अब तक बनाई है, उसका फलाफल क्या है? क्या युवाओं को रोजगार मिल रहे हैं? महंगाई कम हो रही है? अपराध कम हुए हैं? हमारी सीमा पर तैनात सेना के जवान सुरक्षित है? महिलाएं सुरक्षित है? उत्पादन और आपूर्ति में सामंजस्य स्थापित है? जीडीपी ग्रोथ में कमी की संभावना व्यक्त की जा रही है. परिणाम क्या होगा वह भी देखना है. अनगिनत विदेश यात्राओं से हासिल क्या हुआ है? विदेशी निवेश बढ़े है? आदि आदि…. जनता अब तक धैर्य पूर्वक मोदी जी का समर्थन कर रही है. इसका साफ़ मतलब यही है कि अभी भी जनता को भरोसा है कि मोदी जी जनहित, देशहित में काम करेंगे. अगर जनता को लगा कि मोदी जी उनके आशा के अनुरूप कार्य नहीं कर रहे हैं तो यह धैर्य का बांध टूट भी सकता है. उम्मीद है मोदी जी और उनके सलाहकार इस बात को जरूर समझ रहे होंगे.
– जवाहर लाल सिंह, जमशेदपुर

Read Comments

    Post a comment

    Leave a Reply

    Your email address will not be published. Required fields are marked *

    CAPTCHA
    Refresh