Menu
blogid : 3428 postid : 1332650

….और मैंने सिगरेट शराब सब छोड़ दी!

jls
jls
  • 457 Posts
  • 7538 Comments

(तम्बाकू निषेध दिवस पर विशेष)
वैसे सिगरेट पीना मैंने शौक से ही शुरू किया था. ऐसे ही कॉलेज के दिनों में दोस्तों के साथ स्टाइल मारने के लिए! तब सिगरेट के धुंए का छल्ला बनाना और किसी के मुंह पर धुंवा छोड़ना एक शौक था. पिकनिक वगैरह में तो सिगरेट और माचिस की डिबिया मेरी पहचान हुआ करती थी. सिगरेट पीते हुए फोटो खिंचवाने का भी शौक पाल लिया था. उन दिनों देवानंद मेरे पसंदीदा हीरो हुआ करते थे. “हर फ़िक्र को धुंएँ में उड़ाता चला गया…” भी गुनगुना लेता था.
पढाई के बाद नौकरी भी लग गई वह भी एक अच्छी कंपनी में. यहाँ भी मेरा शौक हावी रहा. हर बुरे काम में कुछ साथी भी में मिल ही जाते हैं. काम से फुर्सत के बाद या काम से फुर्सत निकाल कर सिगरेट पी लेता था. जहाँ धूम्रपान करना मना होता था, वहां से बाहर निकलकर बाथ-रूम में या स्मोकिंग ज़ोन में. हमारे अधिकारी भी कभी-कभी हमसे सिगरेट मांग लेते थे. और मैं उनके साथ सिगरेट पीते हुए गौरवान्वित महसूस करता था. कभी-कभी मुझे भी उनके साथ महंगे ब्रांड वाला सिगरेट पीने का आनंद मिल जाता था. खांसी होने पर भी खांसी की दवा के साथ सिगरेट पीना जरूरी होता था… हमारे दूसरे सहकर्मी अधिकारी के साथ उतने सहज नहीं होते थे जितना मैं.
पार्टियों में भी सिगरेट और शराब की आदत को खूब हवा मिलती थी. शराब के कुछ घूँट हलक में जाने के बाद एन्जॉय करने का मजा ही कुछ और था. उस समय अपने सहकर्मियों/अधिकारियों की पोल खोलने का आनंद – क्या कहने! सहकर्मी आनंदित होते थे या मेरा मजाक उड़ाते थे, मुझे कुछ समझ में नहीं आता था. मैं तो सबकी परतें खोलने में ही मशगूल रहता था… बाकी लोग ठहाका लगाते या आहुति डालने का काम करते थे!
“ये देखो ये जो सीधा साधा बंदा रमेश दिख रहा है न … डरता है साला, अपनी बीबी से, जोरू का गुलाम!”… “जूस पीता है!” … “यार पी के देखो शराब! … तब बोलना इसे अच्छा या ख़राब!”….और मैं गिर गया जमीन पर …उल्टी भी हुई ! …. जब होश आया थो खुद को अपने घर में पाया… पत्नी मेरे सिर पर ठंढा पानी डाल रही थी. और जोरू का गुलाम रमेश, मेरा मित्र, मेरे सामने बैठा था.
अब मेरी पत्नी पार्टियों में मेरे साथ जाने से कतराने लगी …नहीं जाने का कोई न कोई बहाना बना देती थी. शायद अन्य महिलाओं के सामने मेरी हरकत से उसे शर्मींदगी महसूस होती थी.
*****
मेरी बच्ची बड़ी होने लगी थी और मेरी आदत को देख रही थी चुपचाप!… होकर आवाक !
मैं घर में शराब या सिगरेट नहीं पीता था. कोई सामान लाने का बहाना बनाकर निकल लेता था और बाहर से ही सिगरेट पीकर आ जाता था.
फिर एक दिन मुझे घर में सिगरेट की तलब लगी और मैंने अपनी पत्नी से कहा – “अरे! धनिया पत्ता लाना तो भूल ही गया …आ रहा हूँ लेकर …”
“हाँ पापा चलिए मैं भी आपके साथ चलती हूँ, मुझे भी आइसक्रीम खानी है.” मेरी बेटी ने बड़े प्यार से कहा. बेटी को आइसक्रीम खिलाकर, धनिया लेकर वापस आ गया. फिर मुझे याद आया कि मुझे एक मित्र से मिलना है. बेटी बोली – हाँ पापा! चलिए, मैं भी आपके साथ चलती हूँ….. मेरा माथा ठनका! …मेरी बेटी सब समझ रही थी! मैंने उसे समझाने की कोशिश की. – “तुम तो घर में पढ़ाई करो. मुझे शायद देर हो जाय!”
“मैं रात में जगकर पढाई कर लूंगी, पर आज मैं आपको अकेले नही जाने दूंगी …मुझे पता है, आप कहाँ जाना चाहते हैं….” और वह फूट फूट कर रोने लगी … मैं अपनी एकमात्र बेटी को बहुत मानता था…. उसका रोना मुझसे देखा नहीं जाता था. उसकी हर ईच्छा मैं पूरी करता था… पर सिगरेट की लत!… उफ्फ…. और उसी समय मैंने अपनी पत्नी और बेटी के सामने कसम खाई … “मैं तुमदोनो की कशम खाता हूँ… अब से शराब-सिगरेट को हाथ नहीं लगाऊँगा…” गजब का परिवर्तन आ गया था मुझमे… मेरे सहकर्मी मित्र आश्चर्यचकित थे. उन्होंने मुझे हिलाने-डुलाने की बहुत कोशिश की… पर अब मैं अपनी बेटी को बहुत मानता हूँ. अपनी बेटी को दुखी नहीं देख सकता था. आज मेरी बेटी मुझसे दूर है फिर भी … सिगरेट ? ना… शराब?…. ना-बाबा-ना!
(मौलिक और अप्रकाशित- मेरे सहकर्मी मित्र की आप बीती पर आधारित यह कहानी सत्य है)
– जवाहर लाल सिंह, 133/L4, ओल्ड बाराद्वारी, साक्ची, जमशेदपुर.
– संपर्क – 9431567275

Read Comments

    Post a comment

    Leave a Reply

    Your email address will not be published. Required fields are marked *

    CAPTCHA
    Refresh