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राजनीति भी अजीब चीज है। इसमें उठापटक चलती रहती है। जहाँ कांग्रेस के भ्रष्टाचार के बाद मोदी जी एक सर्वमान्य नेता के रूप में उभरे और देखते-देखते दुनिया पर छा गए। इधर पड़ोसी देश खासकर पाकिस्तान और चीन बीच-बीच में भारत की संप्रुभता को चुनौती देते रहते हैं। वहीं आज भारतीय राजनीति का विपक्ष बिलकुल सिकुड़ा हुआ किसी कोने में बैठा आहें भर रहा है. जबकि मोदी और उनके सिपहसालार अमित शाह भारत विजय की चाह में पूरे देश में भ्रमण कर रहे हैं।
मीडिया में ख़बरें भी कुछ इसी प्रकार तय होती हैं। कभी नोटबंदी, कभी किसान आन्दोलन, कभी गोमांस और भीड़ का न्याय, तो कभी GST, कभी इजरायल, तो कभी केजरीवाल या लालू का भ्रष्टाचार। आज मीडिया का कैमरा लालू के परिवार और सीबीआई पर केन्द्रित है। सारी समस्यायों का हल शायद लालू परिवार पर शिकंजा से ही होगा। कई साल पहले केजरीवाल मोदी के खिलाफ ज्यादा मुखर थे। उनके खिलाफ उनके ही मंत्री कपिल मिश्रा को लगाकर उन्हें शांत कर दिया गया है। फ़िलहाल वे मीडिया से दूर हैं और सिर्फ अपने काम से काम मतलब रख रहे हैं।
लालू, मोदी के खिलाफ ज्यादा मुखर हो रहे थे। राष्ट्रपति चुनाव के लिए नामांकन के बाद से ही वे विपक्षी एकता को सुदृढ़ करने की कोशिश में लगे हैं। तभी सीबीआई, ED, और चारा घोटाले में सजायाफ्ता लालू को कोर्ट भी बार-बार रांची में आकर हाजिरी लगाने को कह रहा है। पता नहीं वे सुप्रीम कोर्ट से किस आधार पर बेल पाकर राजनीति में पुन: सक्रियता जाहिर करने में सफल हो गए।
नीतीश को अपने पक्ष में किया, कांग्रेस के साथ महागठबंधन बनाया और बिहार में भाजपा को सत्तासीन होने से रोका। आज भी नीतीश की सरकार में उनकी पार्टी से लालू की पार्टी के विधायक हैं। यह बात अलग है कि वे बीच-बीच में लालू का दबाव झेलते रहे हैं और इसीलिए भाजपा अर्थात मोदी जी के फैसलों का समर्थन करते रहते हैं, ताकि लालू के अलग होने से भी वे भाजपा के सहयोग से सत्ता में बने रहें। ममता बनर्जी भी अपने ही राज्य के आन्दोलनकारियों से परेशान है। कांग्रेस राहुल से आगे बढ़ ही नहीं रही।
इस पूरे प्रकरण में नीतीश कुमार अलग दिख रहे हैं। राष्ट्रपति पद के उम्मीदवार के रूप में भाजपा के उम्मीदवार कोविंद जी का समर्थन किया। लालू के परिवार पर सीबीआई के छापे प्रकरण से दूरी बनाये रहे। राजगीर में स्वास्थ्य लाभ कर रहे हैं। उनका कोई भी प्रवक्ता सार्वजनिक बयान से दूर है। अर्थात वे या तो मौन समर्थन कर रहे हैं या अपने को पाक-साफ़ रखना चाहते हैं।
उधर, यह भी खबर है कि बिहार में सत्तारूढ़ गठबंधन में सहयोगी नीतीश कुमार और कांग्रेस पार्टी उस खाई को पाटने की कोशिश कर रही है, जो राष्ट्रपति पद के लिए अलग-अलग प्रत्याशियों को समर्थन देने की वजह से बनती दिखाई दे रही है। अब इसे सदाशयता और कांग्रेस के प्रति सद्भावना जताना माना जा रहा है कि बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार शुक्रवार से ही पटना में नहीं हैं। जब कांग्रेस तथा अन्य विपक्षी दलों की ओर से राष्ट्रपति पद के लिए तय की गईं प्रत्याशी मीरा कुमार पटना आईं।
नीतीश कुमार स्वास्थ्य कारणों का हवाला देते हुए राजधानी से बाहर चले गए हैं। राष्ट्रपति चुनाव में लोकसभा की पूर्व अध्यक्ष मीरा कुमार को 17 विपक्षी दलों की ओर से प्रत्याशी बनाया गया है, जिनका नेतृत्व कांग्रेस कर रही है। इसी गठजोड़ का सदस्य होने के बावजूद नीतीश कुमार ने भारतीय जनता पार्टी (बीजेपी) के प्रत्याशी रामनाथ कोविंद का समर्थन करने का फैसला किया, जो बिहार के राज्यपाल थे। वैसे, विभिन्न क्षेत्रीय दलों तक बनी प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की पहुंच और असर की बदौलत यह लगभग तय है कि रामनाथ कोविंद राष्ट्रपति भवन पहुंचने में कामयाब हो जाएंगे।
कांग्रेस में नंबर दो की हैसियत रखने वाले राहुल गांधी ने अपनी पार्टी को नीतीश कुमार के प्रति मधुरता बनाए रखने के निर्देश दिए हैं। सूत्रों का कहना है कि नीतीश कुमार के प्रति हमलावर तेवर अपनाने वालों को दंडित किया जाएगा, हालांकि यही व्यवहार पार्टी के वरिष्ठ नेता गुलाम नबी आज़ाद के साथ नहीं किया जाएगा, जिन्होंने कहा था कि नीतीश कुमार के लचीले सिद्धांत स्वार्थ पर आधारित हैं।
इसके जवाब में बिहार के मुख्यमंत्री ने कहा था कि कांग्रेस ने मीरा कुमार का चुनाव करने में देर कर समूचे विपक्ष को ‘मुसीबत’ में डाल दिया है। माना जा रहा है कि राहुल गांधी अगले सप्ताह नीतीश कुमार से व्यक्तिगत मुलाकात भी करेंगे। दरअसल, मुख्यमंत्री से विपक्ष की सामूहिक बैठक में शिरकत के लिए दिल्ली आने का आग्रह किया गया है, ताकि उपराष्ट्रपति पद के लिए प्रत्याशी का चुनाव किया जा सके।
उपराष्ट्रपति का चुनाव अगस्त में किया जाएगा और तब तक नए राष्ट्रपति पदग्रहण कर चुके होंगे। कांग्रेस को उम्मीद है कि इस बार वह अधिक निर्णायक तरीके से कदम बढ़ाएगी और नीतीश कुमार का समर्थन नहीं खोएगी। भले ही नीतीश कुमार विपक्ष की सामूहिक बैठक में शिरकत के लिए प्रतिनिधि नियुक्त कर सकते हैं, लेकिन सूत्रों का कहना है कि वह राहुल गांधी से मिलने के लिए प्रतिबद्ध हैं।
नीतीश कुमार की पार्टी जनता दल यूनाइटेड (जेडीयू) के शीर्ष नेता शरद यादव ने कहा है, हम सब विपक्षी एकता के पक्षधर हैं, हम अतीत में इसी के लिए काम करते रहे हैं और आगे भी विपक्षी एकता के लिए काम करते रहेंगे। जो बीत गई, सो बात गई। कांग्रेस ने भी मिलते-जुलते विचार व्यक्त किए हैं। गुलाम नबी आज़ाद ने कहा है कि हम साथ हैं, संसद के भीतर भी, बाहर भी, विधानसभा के भीतर भी, बाहर भी।
अब तो देखना है कि आगे-आगे होता है क्या? मोदी का एकछत्र राज्य बरक़रार रहेगा या कुछ परिवर्तन की संभावना है? कुछ अपवादों को छोड़ दिया जाय तो अधिकांश राजनीतिक व्यक्ति भ्रष्टाचार में किसी न किसी रूप में लिप्त रहते हैं। राजनीति में आते ही उनकी संपत्ति में अकूत वृद्धि हो जाती है। अगर सत्तासीन हों तो फिर क्या कहना?
पिछले दिनों वरिष्ठ पत्रकार एन. के. सिंह को सुन रहा था। वे पत्रकारिता में ही भ्रष्टाचार के मुद्दे पर जवाब दे रहे थे। उन्होंने हाईकोर्ट के एक जज का उदाहरण देते हुए कहा कि उनका सुप्रीम कोर्ट के जज के रूप में चयन हो चुका था। १० करोड़ में बिक गए। उन्होंने सोचा होगा कि सुप्रीम कोर्ट के जज के रूप में शायद ही १० करोड़ कमा सकें। जिस देश में जज सहित अधिकांश अधिकारी, नेता, कर्मचारी आम आदमी भ्रष्टाचार में लिप्त हों, वहां एक पत्रकार से उम्मीद करें कि वे पूरी तरह से स्वच्छ होंगे, बेमानी है।
पत्रकार का काम है सच्ची ख़बरों को जनता के सामने लाना। सरकार की कमियों को उजागर करना पर वे पत्रकार क्या करें, जो बहुत कम तनख्वाह में अपने संपादकों के गुलाम होते हैं। संपादक भी अपने मालिक या सरकार से हितलाभ के लिए समझौता करते ही रहते हैं, फिर पत्रकार भी अछूते नहीं हो सकते हैं। फिर भी हमें निराश नहीं होना चाहिए। कहीं न कहीं सत्य और ईमानदारी की जीत होती है। जनता के कष्ट को दूर करने के लिए सरकार होती है न कि अपना हित साधने और सत्ता में बने रहने के लिए ही हथकंडे अपनाने वाली।
देश ने महात्मा गांधी और नेहरू को देखा है। सरदार वल्लभ भाई पटेल को देखा है। देश रत्न डॉ. राजेन्द्र प्रसाद का नाम आज भी श्रद्धा के साथ लिया जाता है। बिहार के पूर्व मुख्यमंत्री कर्पूरी ठाकुर पर भ्रष्टाचार का कोई दाग नहीं लगा। इसी देश ने इंदिरा गांधी जैसे सशक्त नेता को देखा है। मनमोहन सिंह को ईमानदार बताने में मोदी जी ने भी एक नए मुहावरे का प्रयोग कर दिया।
अभी मोदी जी आदर्श बने हुए हैं, लेकिन क्या उनके कुनबे में सभी ईमानदार हैं। उनकी सभाओं और रैलियों को शानदार बनाने वाले कोई तो प्रायोजक होंगे। कैमरा उन्ही पर केन्द्रित रहता है। वे सरेआम किसी को भी बेईमान बोल देते हैं और वही बेईमान लोग मोदी! मोदी! के नारे लगाने लगते हैं। कुछ तो मजबूरियां रही होंगी, नारे लगानेवालों के साथ! जयहिंद! जय भारत! जय लोकतंत्र!
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