Menu
blogid : 3428 postid : 1357865

मैं तो जी भरकर सोई

jls
jls
  • 457 Posts
  • 7538 Comments

मैं तो जी भरकर सोई! वह चहकते हुई बोली. कैसा रहा तुम्हारा तीन दिन की छुट्टी? अपने ही सहकर्मी के साथ बात-चीत के दौरान, लगातार तीन दिन की छुट्टी के बाद एक महिला बैंक अधिकारी का प्रफ्फुलित जवाब ! एक बच्चे की माँ बन कर भी अपना बचपना नहीं खोई है. यही है उसके जिंदादिली का राज. बहुत ही जिंदादिल और अपने काम में तल्लीन रहनेवाली मधु अपने टेबुल के पास से गुजरनेवाले हर ग्राहक पर पैनी नजर रखती है. जो भी काम हो उस बैंक से सम्बंधित चुटकी बजाते कर डालती है. आपका ATM कार्ड खो हो गया है? कोई बात नहीं, कार्ड क्षतिग्रस्त हो गया है? अभी इशू कर देती हूँ. एक्टिवेट लेकिन कल से होगा. आधार लिंक करवाना है … साथ में लाये हैं …ज़ेरोक्स नहीं है, अभी करवा देती हूँ… कार्तिक!…साहब का आधार कार्ड ले जाओ और ज़ेरोक्स कर के ले आओ.
सर, आप हमेशा FD करवाते रहते है एक बार SIP या म्यूच्यूअल फण्ड में भी डालकर देखिये …आपको ज्यादा return मिलेगा. गारंटीड बेनिफिट …फ्लेक्सिबिलिटी भी ..जब चाहे इसे encash कर सकते हैं. एक साल के बाद या तीन साल के बाद सब तरह का स्कीम है. एक बार मेरी बात मानकर देखिये …मैं आपको return दिखलाती हूँ.
क्या कहा अभी नहीं… अच्छा फिर कब? आपको लोन चाहिए … रमेश जी आइये इनसे बात कर लीजिये .. आप अपना मोबाइल दीजिये न सर … क्यों क्या हुआ? बस एक मैसेज आपके मोबाइल से करना है …आपके मोबाइल पर एक मैसेज आएगा ऑटो लोन के लिए … आप यस या नो कुछ भी कर सकते हैं.
और मेरे मोबाइल से मैसेज हो गया … तीन रुपये कट गए मैसेज के … पानी पिलाइये … गला सूख रहा है … अरे बाप रे! तीन रुपये में गला सूखने लगा. कार्तिक!…. साहब को चाय पिलाओ …और कार्तिक ले आया एक कप चाय के साथ एक गिलास पानी भी… अजब सक्रियता है इस बाला …किशोरी,,, महिला में … सभी बैंक कर्मचारी ऐसे नहीं होते
वैसे तो वह ज्यादातर बिजी ही रहती है, फिर भी अगर थोड़ी भी फुर्सत है तो अपना व्यक्तिगत बात भी साझा करने से नहीं चूकती. अपनी माँ के बारे में पिताजी के बारे में हर बात साझा करती है. … एक बार मैं अपनी माँ के लिए साड़ी लेकर गयी….. बहुत गुस्सा हुई…. मैंने दाम नहीं बताया, फिर भी …क्या जरूरत थी इतना महंगा साड़ी खरीदने की…. मेरे पास पहले से ही तो कितनी साड़ियां पड़ी हुई है. कमाने लगी है तो क्या कुछ पैसे बचाकर नहीं रख सकती अपने ही फ्यूचर के लिए! और न जाने क्या क्या बोलती रही… मैं तो किचेन में घुस गयी और चाय बनाकर ले आयी …हम दोनों ने साथ चाय पी और माँ बोलती रही … जानती है मधु, तुम्हारे पिता जी भी ऐसे ही अचानक जब कोई साड़ी या उपहार लेकर आते मैं उन्हें भी सुना देती थी. दरअसल हमलोगों बड़ी कठिनाई के साथ अपनी जिंदगी चलायी है तुम्हे और तुम्हारे भाई को पढ़ाया… तुम पढ़ने में अपने भाई से अच्छी थी तभी तो तुम्हे साइंस पढ़ाया …तुम्हारा भाई बड़ा है पर नौकरी तुझे पहले मिल गयी … आज तुम मेरे पास हो. कल को अपने ससुराल चल जाएगी वहां तुम्हे अपनी सास ससुर का सामना करना पड़ेगा… बेटियों का यही हाल है जितनी भी अच्छी हो सास ससुर और ननद देवर आदि के ताने सुनने ही पड़ते हैं…..बहुत समझाती है मेरी माँ … पर मैं तो उनकी बातें सुनकर मजा ही लेती हूँ… ठीक है ताने देंगे तो मैं कौन सी कम हूँ. मैं भी जवाब देना जानती हूँ.
अपने सहकर्मियों को भी उकसाती रहती हो … दिलीप एक FD पड़ा हुआ है, तुम्हारे पास, Approve कर दो न…. सर, बैठे हुए हैं … करता हूँ न यार … मैं क्या बैठा हूँ. मेरे पास अभी बहुत सा काम पड़ा है… मैं जानती थी, तुम यही बोलोगे.. पर चाहती थी, जरा जोर से बोलो… एक और पिन चुभा देती है…. फिर अपने काम में लग जाती है….दिलीप जी भी शायद चिढ़ाने के लिए ही ऐसा बोले होंगे.
एक और सहकर्मी है सूर्या…. वह किसी भी कस्टमर को पहले इन्वेस्टमेंट करने का तरीका ही बताता है. बेचारा कस्टमर जिस काम से आया है वह काम न करके उसे इन्वेस्टमेंट समझाता है. कस्टमर झल्लाता है और वह उठकर चला भी जाता है… अब मौका मधु को मिलता है…
एक बात तुममे है है सूर्या
… क्या?
तुम किसी को भी भी इर्रिटेट कर दे सकते हो…
बेचारा सूर्या आवाक!
एक बार मैंने पूछ ही लिया – आपके हस्बैंड क्या करते हैं? … वे भी बैंक में हैं. HDFC में हैं. उनका ब्रांच आदित्यपुर में है. हम दोनों मानगो में रहते हैं. अक्सर हमलोग साथ ही निकलते हैं. वे मुझे छोड़ते हुए अपने ऑफिस चले जाते हैं. जाते समय मुझे ले लेते हैं. वैसे मेरे पास अपना स्कूटी भी है. मैं अकेले भी आ जाती हूँ. कभी कभी बैंक के ही काम से इधर उधर या मार्केट होते हुआ जाना पड़ा तो, आसानी रहती है.
एक बार अपने बगल की टेबुल वाली आँचल से कह रही थी… कैनवास मेला गयी क्या? ..मैं तो गयी थी कल.. एक पालना ली अपने बाबू के लिए. बहुत रोता है अब पालने में झूलता रहता है …तब हँसता है, मुसकुराता है…. के करूँ इधर ऑफिस में ही इतनी देर हो जाती है कि मैं कहाँ समय दे पाती हूँ उसे. वो तो मेरी माँ पास में है तो वही उसे बहला फुसलाकर रखती है. पर बहुत सयाना है… मेरी आहट सुनते ही रोने का नाटक करने लगेगा..,. और मैं उसे सबसे पहले गोद में उठाकर थोड़ा झुला लेती हूँ …तो मेरी भी थकान उतर जाती है.
तभी कार्तिक आता है …धीरे से कहता है… बॉस बुला रहे हैं… और वह उठकर चल देती है… बॉस के ऑफिस की तरफ.
थोड़ी देर बाद आती है.. जितना भी करो …बॉस के पास कुछ न कुछ काम रहेगा ही… हर बॉस का यही नियम है… जो जितना करेगा काम भी उसी को दिया जायेगा…
आप पाठकों से आग्रह है ..आप लोग पढ़कर बताएं कैसी लगी मेरी यह कहानीनुमा रचना. सुझाव एवं प्रतिक्रिया से अवगत कराएं!
सादर

-जवाहर लाल सिंह

Read Comments

    Post a comment

    Leave a Reply

    Your email address will not be published. Required fields are marked *

    CAPTCHA
    Refresh