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कोरे नारे और सपनों से देश नहीं चलता, रोटी, कपड़ा और मकान सबको चाहिए

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प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने शनिवार को गुजरात में एक जनसभा को संबोधित करते हुए कहा कि इस बार देश में दिवाली जल्दी आ गई है. उन्होंने कहा कि शुक्रवार को जीएसटी काउंसिल द्वारा वस्तु एवं सेवा कर (जीएसटी) के नियमों में कुछ राहत मिलने से छोटे और मझोले व्यापारियों को लाभ होगा. दिवाली की एक झलक मोदी जी के वडनगर दौरे में भी दिखी, ठीक वैसे ही जब श्रीराम लंका विजय कर अयोध्या लौटे थे.


GST


मोदी जी जो कहते हैं वही करते हैं या होता है. दो दिवसीय गुजरात दौरे पर आए मोदी ने कहा, “आज, हर जगह यह कहा जा रहा है कि जीएसटी परिषद में लिए गए फैसलों के चलते (शुक्रवार को) दिवाली 15 दिन पहले आ गई है. मैं खुश हूं.” मोदी ने कहा कि छोटे व्यापारियों, व्यापारियों और निर्यातकों के लिए जीएसटी प्रावधानों में ढील देने का फैसला केंद्र सरकार द्वारा समय-समय पर नए कर व्यवस्था के कामकाज की समीक्षा करने के वादे के अनुसार था.


उन्होंने कहा, “हमने कहा था कि हम कमियों सहित तीन महीनों के लिए जीएसटी से संबंधित सभी पहलुओं की समीक्षा करेंगे और इस प्रकार जीएसटी परिषद में आम सहमति से फैसला लिया गया है.” प्रधानमंत्री ने द्वारका जिले के मोजक में देश के पहले और सबसे बड़े समुद्री पुलिस प्रशिक्षण संस्थान की स्थापना करने की घोषणा की.


शुक्रवार की शाम को जीएसटी कांउसिल की दिन भर चली बैठक के बाद जिन चीजों को सस्ता करने की घोषणा की गई उनमें खाखरा भी था और नमकीन भी. उसमें सूखे आम की खटाई भी थी और धागे भी. उसमें टेक्सटाइल भी था पॉलियेस्टर और नॉयलॉन के धागे भी. इनमें से ज्यादातर चीजों पर जीएसटी की दर को घटाकर पांच फीसदी कर दिया गया, जो जीएसटी कानून के तहत टैक्स फ्री जरूरी वस्तुओं के बाद टैक्स की सबसे कम दर है. लेकिन विपक्ष अब सरकार की इस दरियादिली को गुजरात चुनाव से जोड़कर देख रहा है. विपक्ष इसे ‘गुजरात सर्विस टैक्स’ बता रहा है.


शुक्रवार को ही ज्वेसलर्स को राहत देने वाला ये फैसला भी किया गया कि दो लाख तक के गहनों की खरीद पर अब पैन कार्ड देना जरूरी नहीं होगा. ये भी फैसला हुआ कि जिन व्यापारियों का सलाना टर्नओवर 1.5 करोड़ से कम है, उन्हें अब हर महीने के बजाए तीन महीने में एक बार जीएसटी रिटर्न भरना होगा. जीएसटी को लेकर निर्यातकों की भी कई शिकायतें दूर कर दी गईं. राहत भरे इन तमाम फैसलों के बाद प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी शनिवार को गुजरात दौरे पर चुनाव प्रचार के लिए चले गए, जहां जल्द ही विधानसभा के चुनाव होने हैं. ये एक महीने के भीतर मोदी की तीसरी गुजरात यात्रा है.


अब ये बात किसी से छिपी नहीं है कि जिन चीजों पर जीएसटी कम करने में सरकार की मेहरबानी हुई है उनमें से कई चीजें ऐसी हैं, जिनका गुजरात से सीधा रिश्ता है. खाखरा और नमकीन सबसे ज्यादा गुजरात में ही खाया जाता है, कपड़ों के बनाने और निर्यात में गुजरात काफी आगे है और सूरत की डायमंड इंडस्ट्री की धाक सबको मालूम है. मोदी ने जीएसटी को गुड ऐंड सिंपल टैक्स का नाम दिया था, लेकिन शुक्रवार के फैसलों के बाद सोशल मीडिया पर कई लोग इसे गुजरात सर्विस टैक्स नाम दे रहे हैं.


इसमें कोई शक नहीं कि जीएसटी की राहत में गुजरात के चुनाव का ख्याल रखा गया है. सरकार को लगातार ये रिपोर्ट मिल रही थी कि जीएसटी के लागू होने के बाद व्यापारियों को जो दिक्कत हुई है उससे उनके भीतर नाराजगी बढती जा रही है. गुजरात न सिर्फ नरेन्द्र मोदी का अपना राज्य है, बल्कि व्यापार के मामले में देश में सबसे अग्रणी राज्यों में से है. इसलिए यहां से चुनाव नतीजों पर सबकी नजर होगी और बीजेपी के लिए गुजरात में सत्ता में बने रहना बेहद जरूरी है.


गुजरात चुनावों के लिए जीएसटी की राहत को लेकर सरकार पर विपक्ष से लेकर सहयोगी दलों की तरफ से चौतफा हमले हो रहे हैं. केन्द्र सरकार में बीजेपी के सहयोगी दल शिवसेना के नेता उद्धव ठाकरे ने कहा कि जीएसटी की दरों में बदलाव गुजरात चुनावों को देखते हुए किया गया है और ये दीवाली गिफ्ट नहीं है. उन्होंने कहा कि पेट्रोल की कीमतों में राहत दिए जाने की जरूरत है और बीजेपी ने ये कदम इसलिए उठाया है, क्योंकि उसे लोगों के गुस्से का अंदाजा था.


जीएसटी की दरों में बदलाव को मोदी ने गुजरात में दीवाली का तोहफा बताया तो हिमाचल चुनाव प्रचार के दौरान राहुल गांधी ने कहा कि बिना सोचे समझे जीएसटी लागू करने की वजह से गुजरात में ही 30 लाख लोगों ने नौकरियां गंवाईं हैं. सरकार की आर्थिक नीतियों पर लगातार हमला बोल रहे बीजेपी के वरिष्ठ नेता और पूर्व वित्त मंत्री यशवंत सिन्हा ने भी कहा कि राजनीतिक फायदा लेने के लिए जीएसटी के दरों में बदलाव किया गया.


ज्ञातव्य है कि नोटबंदी और GST पर मोदी जी पर चारों तरफ से हमला हो रहा है. विपक्ष तो विपक्ष, अब पार्टी के भीतर से भी आवाज उठाने लगी है. अटल बिहारी वाजपेयी सरकार में रहे पूर्व वित्त मंत्री यशवंत सिन्हा के अलावा अरुण शौरी ने भी मोदी पर हमला करते हुए कहा कि नोटबंदी और GST हड़बड़ी में बिना पूर्ण तैयारी के लागू किया गया, तो यह बात उस दिन पी एम को नागवार लगी थी और उन्होंने इन लोगों की तुलना कर्ण के सारथी शल्य से कर दी, जो कर्ण को युद्ध के दौरान हमेशा हतोत्साहित करता रहता था.


यशवंत सिन्हा ने भी पलटकर जवाब दिया था कि मैं शल्य नहीं भीष्म हूँ, पर मैं उनकी (भीष्म की) तरह भारतीय अर्थव्यवस्था का चीरहरण होते नहीं देख सकता. इसमें कोई दो राय नहीं कि नोटबंदी और GST लागू होने के बाद व्यापारियों की दिक्कतें बढ़ी हैं तो महंगाई लगातार बढ़ती जा रही है. कई उद्योग धंधे या तो बंद हो चुके हैं या बंदी के कगार पर हैं.


बेरोजगारी दिन प्रतिदिन बढ़ती जा रही है. इससे नवयुवकों में रोष है. इसका प्रभाव सोशल मीडिया पर कई प्रकार की प्रतिक्रियाओं के रूप में उभरा है. राष्ट्रीय चैनल तो राम रहीम और हनीप्रीत में लोगों को उलझाकर रखा है. कुछ निष्पक्ष समाचार पत्र ख़बरें छाप रहे हैं. उन पर भी बहुत तरह का दबाव डाला ही जा रहा है पर सोशल मीडिया मुखर हुआ है और कहीं न कहीं मोदी समर्थक भी मुंह खोलने पर मजबूर हुए हैं.


गुजरात और हिमाचल में भावी चुनाव को देखते हुए कुछ हद तक रोलबैक करने की कोशिश हुई है. अब देखा जाय कि इसका असर आगामी चुनावों पर क्या पड़ता है. दरअसल विपक्ष धराशायी है और खंड-खंड में बंटा हुआ है. कोई नेता भी उभरकर सामने नहीं आ रहा, इसलिए स्थिति चिंताजनक है. अगर मोदी जी इसी तरह अपने मन से या कुछ खासलोगों के हित में फैसले लेते रहे तो, हो चुका विकास और संकल्प से सिद्धि.


कहावत है “उद्यमेन ही सिध्यन्ति कार्याणि न मनोरथै”. कोरे नारे और सपनों से देश नहीं चलता. कम से कम रोटी, कपड़ा और मकान सबको चाहिए. हर हाथ को काम और उसका मेहनताना तो चाहिए ही. मोदी जी मेहनत करते हैं, पर उन्हें कुछ विशेषज्ञों की सलाह भी अवश्य लेनी चाहिए. इरादा या नीयत अच्छी होने से भी कार्यकुशलता आवश्यक है.


जाने-माने अर्थशास्त्री लोग मोदी जी की आलोचना कर चुके हैं, पर मोदी जी सुनें, समझें, माने तब न. वैसे मोदी जी की कार्यशैली, भाषण कला से सभी प्रभावित हैं और अंत-अंत तक ऐसा कुछ कर गुजरते हैं, ताकि आम जनता का फैसला उनकी तरफ हो. बाकी काम उनके चाणक्य अमित शाह कर ही देते हैं. फिलहाल जन समर्थन के साथ चलना आम जन की मजबूरी है. फिर भी गलत का विरोध तो होना ही चाहिए. निम्न मध्यवर्ग हमेशा परेशान रहता है. उम्मीद की जानी चाहिए कि निम्न-मध्यवर्ग के हितों की रक्षा होगी.

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