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पद्मावती या पद्मिनी चित्तौड़ के राजा रतनसेन [1302-1303 ई०] की रानी थीं. इस राजपूत रानी के नाम के ऐतिहासिक अस्तित्व पर कई मत हैं और इसका ऐतिहासिक अस्तित्व तो प्रायः इतिहासकारों द्वारा काल्पनिक स्वीकार कर लिया गया है. इस नाम का मुख्य स्रोत मलिक मुहम्मद जायसी कृत ‘पद्मावत’ नामक महाकाव्य है. अन्य जिस किसी ऐतिहासिक स्रोतों या ग्रंथों में ‘पद्मावती’ या ‘पद्मिनी’ का वर्णन हुआ है वे सभी ‘पद्मावत’ के परवर्ती हैं.
इतिहास ग्रंथों में अधिकतर ‘पद्मिनी’ नाम स्वीकार किया गया है, जबकि जायसी ने स्पष्ट रूप से ‘पद्मावती’ नाम स्वीकार किया है. जायसी के वर्णन से स्पष्ट होता है कि ‘पद्मिनी’ से उनका भी तात्पर्य स्त्रियों की उच्चतम कोटि से ही है. जायसी ने स्पष्ट लिखा है कि राजा गंधर्वसेन की सोलह हजार पद्मिनी रानियाँ थीं, जिनमें सर्वश्रेष्ठ रानी चंपावती थी, जो कि पटरानी थी. इसी चंपावती के गर्भ से पद्मावती का जन्म हुआ था. इस प्रकार कथा के प्राथमिक स्रोत में ही स्पष्ट रूप से ‘पद्मावती’ नाम ही स्वीकृत हुआ है.
जायसी के अनुसार पद्मावती सिंहल द्वीप के राजा गंधर्वसेन की पुत्री थी और चित्तौड़ के राजा रतन सेन योगी के वेश में वहाँ जाकर अनेक वर्षों के प्रयत्न के पश्चात उसके साथ विवाह करके उन्हें चित्तौड़ ले गए. वह अद्वितीय सुन्दरी थीं और रतनसेन के द्वारा निरादृत ज्योतिषी राघव चेतन के द्वारा उनके रूप का वर्णन सुनकर दिल्ली के सुल्तान अलाउद्दीन खिलजी ने चित्तौड़गढ़ पर आक्रमण कर दिया था.
8 माह के युद्ध के बाद भी अलाउद्दीन खिलजी चित्तौड़ पर विजय प्राप्त नहीं कर सका तो लौट गया और दूसरी बार आक्रमण करके उस ने छल से राजा रतनसेन को बंदी बनाया और उसे लौटाने की शर्त के रूप में पद्मावती को मांगा. तब पद्मावती की ओर से गोरा-बादल की सहायता से अनेक वीरों के साथ वेश बदलकर पालकियों में पद्मावती की सखियों के रूप में जाकर राजा रतनसेन को मुक्त कराया गया.
परंतु इसका पता चलते ही अलाउद्दीन खिलजी ने प्रबल आक्रमण किया, जिसमें दिल्ली गये प्रायः सारे राजपूत योद्धा मारे गये. राजा रतनसेन चित्तौड़ लौटे परंतु यहां आते ही उन्हें कुंभलनेर पर आक्रमण करना पड़ा और कुंभलनेर के शासक देवपाल के साथ युद्ध में देवपाल मारा गया, परंतु राजा रतनसेन भी अत्यधिक घायल होकर चित्तौड़ लौटे और स्वर्ग सिधार गए.
उधर, पुनः अलाउद्दीन खिलजी का आक्रमण हुआ. रानी पद्मावती ने सोलह सौ स्त्रियों के साथ जौहर कर लिया तथा किले का द्वार खोलकर लड़ते हुए सारे राजपूत योद्धा मारे गये. अलाउद्दीन खिलजी को राख के सिवा और कुछ नहीं मिला. रानी पद्मिनी, राजा रत्नसिंह तथा अलाउद्दीन खिलजी के आक्रमण को लेकर इतिहासकारों के बीच काफी पहले से पर्याप्त मंथन हो चुका है. इस संदर्भ में सर्वाधिक उद्धृत तथा प्रमाणभूत रायबहादुर गौरीशंकर हीराचंद ओझा का मत माना गया है.
ओझा जी ने पद्मावत की कथा के संदर्भ में स्पष्ट लिखा है कि इतिहास के अभाव में लोगों ने पद्मावत को ऐतिहासिक पुस्तक मान लिया, परंतु वास्तव में वह आजकल के ऐतिहासिक उपन्यासों सी कविताबद्ध कथा है, जिसका कलेवर इन ऐतिहासिक बातों पर रचा गया है कि रतनसेन (रत्नसिंह) चित्तौड़ का राजा, पद्मिनी या पद्मावती उसकी राणी और अलाउद्दीन दिल्ली का सुल्तान था, जिसने रतनसेन (रत्नसिंह) से लड़कर चित्तौड़ का किला छीना था.
इस प्रकार यह स्पष्ट हो जाता है कि जायसी रचित पद्मावत महाकाव्य की कथा में ऐतिहासिकता ढूँढना बहुत हद तक निरर्थक ही है. यदि कोई जड़ है तो केवल यही कि अलाउद्दीन ने चित्तौड़ पर चढ़ाई कर छः मास के घेरे के अनंतर उसे विजय किया; वहाँ के राजा रत्नसिंह इस लड़ाई में लक्ष्मणसिंह आदि कई सामंतो सहित मारे गए, उनकी राणी पद्मिनी ने कई स्त्रियों सहित जौहर की अग्नि में प्राणाहुति दी. इस प्रकार चित्तौड़ पर थोड़े-से समय के लिए मुसलमानों का अधिकार हो गया. यह इमारत पद्मिनी का महल बताया गया है, परंतु यह एक पेक्षाकृत आधुनिक इमारत है.
यह कथा एक राजपूत प्रणाली के अनुरूप विशुद्ध तथा स्वस्थ परंपरा के रूप में चली आयी है, उसे सहज में अस्वीकार करना ठीक नहीं. स्थापत्य इस बात का साक्षी है कि चित्तौड़ में पद्मिनी के महल है और पद्मिनी ताल है जो आज भी उनकी याद दिला रहे हैं. इसमें कोई संदेह नहीं कि चित्तौड़ आक्रमण के लिए अलाउद्दीन का प्रमुख आशय राजनीतिक था, परंतु जब पद्मिनी की सुंदरता का हाल उसे मालूम हुआ तो उसको लेने की उत्कंठा उसमें अधिक तीव्र हो गयी.
इस प्रकार उपर्युक्त समस्त विवेचन से यह स्पष्ट परिलक्षित होता है कि राजा रत्नसिंह की पत्नी का नाम पद्मिनी या पद्मावती हो या नहीं, परंतु इससे उस रानी का न तो ऐतिहासिक व्यक्तित्व खंडित होता है और न ही उसकी गौरवगाथा में कोई कमी आती है. पूरे आन-बान के साथ जीने वाली तथा गौरव-रक्षा के लिए हँसते-हँसते प्राण न्योछावर कर देने वाली उस रानी की स्मृति भी हमेशा प्रेरणास्पद तथा आदर के योग्य रहेगी.
उपर्युक्त बातें गूगल पर उपलब्ध जानकारी से ली गयी हैं. अब आते हैं भंसाली की फिल्म पद्मावती और उस पर उठे विवाद पर. कहीं से अफवाह उड़ाई गयी कि फिल्म में अलाउद्दीन खिलजी के स्वप्न में रानी पद्मावती आती है जिसमें विवादित, आपत्तिजनक और अशालीन दृश्य हैं, जिससे राजपूत या क्षत्राणी महिला की आन-बान का नुकसान होता, जिससे राजपूतों की भावना आहत होती है. विरोध का स्वर राजस्थान की ही करणी सेना ने बुलंद किया और भंसाली की पद्मावती रिलीज न होने देने के लिए हिंसात्मक प्रदर्शन किये.
सरकारी और गैर सरकारी संपत्ति का नुकसान किया. गणमान्यों ने फिल्म देखने के बाद यही कहा था कि फिल्म में कहीं कोई आपत्तिजनक दृश्य नहीं है. बल्कि इसमें राजपूतों के आन-बान और शान को बेहतर ढंग से प्रदर्शित किया गया है. खिलजी को एक खलनायक के रूप में ही दिखाया गया है. अलबत्ता खिलजी के रोल को निभाने वाले रणवीर सिंह की एक्टिंग की सभी ने सराहना की है.
पद्मिनी या पद्मावती का रोल दीपिका पादुकोण ने किया है. इनकी भूमिका को भी लोगों ने सराहा ही है. राजपूत महिला के सम्मान के लिए बवाल खड़ा करने वाले ने दीपिका की नाक और भंसाली की गर्दन काटने तक का फतवा जारी कर दिया था. फ़िलहाल 25 जनवरी को पद्मावत नाम से भंसाली की फिल्म रिलीज हो चुकी है और काफी लोग देख भी रहे हैं.
ख़बरों के अनुसार दो दिन में ही ५८ करोड़ कमा लेने वाली फिल्म का अच्छा-खासा प्रचार हो गया और यह फिल्म सुपर-डुपर हिट हो गयी है. करणी सेना फिलहाल बैकफुट पर आ गयी है. भले ही राजपूत वर्ग इस आन्दोलन से एक जुट हुए हैं. करणी सेना के संस्थापक लोकेन्द्र सिंह की अगर कोई राजनीतिक महत्वाकांक्षा रही होगी तो शायद किसी पार्टी से टिकट पाने में सफल हो जाएँ या एक अलग राजनीतिक पार्टी बना लें. यही इस आन्दोलन का सार होगा. बाकी तो जाति की राजनीति पूरे देश में होती रही है. अब यह मुद्दा शांत होता दिख रहा है.
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